भीष्म

भीष्म जब शैया पर लेटे थे तब भगवान कृष्ण इसलिए मुस्कुरा रहे थे- जरुर पढ़ें इस कहानी को

महाभारत में भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्रदान था. सभी जानते हैं कि भीष्म को कोई भी मार नहीं सकता था. इच्छा मृत्यु का वरदान के कारण ही भीष्म का जयकार चारों दिशाओं में हुआ था. महाभारत का जब युद्ध शुरू होने वाला था तब दुर्योधन इसीलिए प्रसन्न था क्योकि उसके पास भीष्म पितामह थे और इनको इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था.

जब दुर्योधन ने भीष्म पितामह को बताया कि कृष्ण ने युद्ध में ना लड़ने की बात बोलकर अपनी सेना हमें दे दी है तो यह सुन भीष्म हैरान हो गये थे. भीष्म जान गये थे कि कृष्ण ने जरुर कोई मायाजाल रचा है और तब भीष्म दुर्योधन के साथ कृष्ण से मिलने गये थे. तब भीष्म ने कृष्ण से यह पूछा था कि आपने युद्ध में ना लड़ने की बात क्यों की है और कृष्ण ने तब भी कोई जवाब नहीं दिया था बस मुस्कुराकर वहां से चल दिए थे. कृष्ण की इस मुस्कान के पीछे क्या राज था यह बात कोई नहीं जान पाया था लेकिन जब भीष्म पितामह शैया पर लेटे हुए थे तब कृष्ण ने मुस्कुराकर अपने सभी राज को खोला था. तो आइये आज हम आपको बताते हैं कि कृष्ण उस समय क्यों मुस्कुरा रहे थे जब भीष्म पितामह शैया पर लेटे हुए थे-

दुर्योधन शैया के पास कर रहा था विलाप

जब भीष्म पितामह शैया पर लेटे हुए थे तब दुर्योधन इसलिए दुखी था क्योकि उसकी सेना का सबसे अधिक बहादुर और शक्तिशाली योद्धा शैया पर लेटा हुआ है. जो योद्धा किसी से मर नहीं सकता था और जो योद्धा अपनी इच्छा से ही मर सकता था वह आज क्यों अपनी इच्छा से अपने प्राण त्याग कर रहा है? जब भीष्म शैया पर लेटे थे तब कृष्ण सभी पांडवों के साथ वहां आते हैं और भीष्म को देख मुस्कुराते हैं.

यह देख भीष्म कृष्ण से हाथ जोड़कर पूछते हैं कि हे प्रभु आप उस दिन भी मुस्कुरा रहे थे और आज भी मुस्कुरा रहे हैं, आखिर इस मुस्कराहट के पीछे आपका राज क्या है? तब कृष्ण बताते हैं कि हे भीष्म, जब मैंने अपनी सेना दुर्योधन को दी थी तब सभी यह बोल रहे थे कि अब दुर्योधन को कोई नहीं हरा सकता है क्योकि इसके पास एक तरफ सेना है और दूसरी तरफ भीष्म पितामह है जिसको इच्छा मृत्यु का वरदान है.

लेकिन तब कोई भी यह नहीं समझ पाया था कि व्यक्ति के मन में इच्छाओं को पैदा करने का दम गोविन्द के हाथ में सदा से रहा है. कोई यदि गोविन्द का ध्यान करता है तो उस भक्त की खराब इच्छाओं को गोविन्द ही तो खत्म करता है, किन्तु भक्त को लगता है कि देखो मैंने मन जीत लिया है किन्तु तभी ईश्वर व्यक्ति की इच्छाओं को छोड़ देता है और तब भक्त फिर से मायाजाल में फँस जाता है. हे भीष्म तुमको इच्छा मृत्यु का वरदान गोविन्द ने ही दिया था ईश्वर ने दिया था किन्तु तुम खुद यह नहीं समझ पा रहे थे कि ईश्वर तुम्हारी जीने की इच्छा कभी भी खत्म कर सकता है.

कृष्ण की इस मुस्कान से यह सीखें

यह सुन भीष्म समझ गये थे कि इंसान के हाथ में कुछ भी नहीं होता है. हमारे हाथ में बस खुद को सावधान करना होता है. अपनी इच्छाओं को हमें सदा सावधान करना चाहिए, लेकिन यह सोचना की हमने खुद की इच्छाओं को को खत्म कर लिया है तो भक्त की यह गलती होगी. यदि हमारे मन में बुरे विचार नहीं आ रहे हैं तो इसमें हमारी कोई मेहनत नहीं है यह ईश्वर की देन है और बुरे विचार आते हैं तो उस समय ईश्वर हमारी परीक्षा ले रहा होता है इसलिए बुरे विचार खत्म करने के लिए ईश्वर से हर रोज भक्त को प्रार्थना करनी चाहिए.

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