पितृ दोष में कौए को क्यों दी जाती है इतनी अहमियत ?
श्राद्ध पक्ष शुरु हो चुका है और श्राद्ध के दिनों में कौवे को पितरों को प्रतीक माना जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध का भोजन पितरों के रूप में कौओं को खिलाया जाता है। आप अकसर सह सोचते होंगें कि आखिर पितृ पक्ष का खाना कौओ को ही क्यों खिलाया जाता है ?
तो चलिए आज हम आपको इस सवाल का जवाब देते हैं।
भारत के साथ-साथ अन्य प्राचीन संस्कृतियों और सभ्यताओं में भी कौए को महत्व दिया गया है। गरुड़ पुराण में कौए को यमराज का संदेश वाहक बताया गया है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में कौए भोजन ग्रहण कर यमलोक में बैठे पितरों तक उसे पहुंचाते हैं।
ग्रीक की पौराणिक कथाओं में कौवे को गुडलक का प्रतीक माना गया है। इसमें रैवन का जिक्र किया गया है जोकि कौए का ही एक प्रकार होता है। इसे ईश्वर का दूत कहा गया है। वहीं संसार के निर्माण में भी कौए के योगदान की बात कही गई है।
हिंदू धर्म की अनेक पौराणिक कथाओं में कौए को देवपुत्र का स्थान दिया गया है। किवदंती है कि इंद्र देव के पुत्र जयंत ने माता सीता पर मोहित होकर कौए का रूप धारण किया था और उसने माता सीता के अस्वीकारे जाने पर उन्हें घायल कर दिया था। तब भगवान राम ने उसे ब्रह्मास्त्र से घायल कर दिया था। तब जयंत को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने श्रीराम से क्षमा मांगी। क्षमा देते हुए भगवान राम ने उसे वरदान दिया कि पितरों को भोजन देने के लिए तुम्हें भोजन दिया जाएगा और तुम्हारे सहारे पितरों को भोजन मिलेगा।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण करने के बाद भोजन का एक भाग कौए के लिए रख दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार ये पंरपरा सदियों पुरानी है और इसके अंतर्गत तर्पण के पश्चात् कौए के लिए भोजन रख दिया जाता है। यदि कौआ उस भोजन को ग्रहण कर ले तो इसका अर्थ है कि आपके पितरों ने भोजन को ग्रहण कर लिया है।