इन कारणों से नहीं मिलता भाग्य का साथ !
भाग्य का साथ – जो कर्म करता है उसे भाग्य की चिंता नहीं रहती।
कितनी भी परेशानियां आ जाएं, वो अपने लक्ष्य तक पहुंचकर ही रहता है। वैसे तो भाग्य से बड़ा कर्म होता है लेकिन अच्छी या बुरी दशाएं किसी कार्य को जटिल या आसान जरूर बना सकती हैं।
भाग्य का साथ –
कुंडली की दशाएं
ज्योतिष की मानें तो अच्छे या बुरे भाग्य के पीछे कुंडली की दशाएं जिम्मेदार होती हैं। अगर आप अपनी कुंडली में दुभाग्य देने वाली दशाओं को पहचान लें तो आप इन्हें सुधार सकते हैं। अच्छा भाग्य देने वाली दशाओं को पहचानकर आप अपने कार्यों की सफलता को सुनिश्चित कर सकते हैं।
ज्योतिष के अनुसार कुंडली का नवम भाव भाग्य का स्थान होता है।
इसी भाव से किसी व्यक्ति के भाग्य का पता चलता है। जिस कुंडली में त्रिकोण भाव बन रहा है वह जातक अत्यंत भाग्यशाली होता है। त्रिकोण भाव में नवम भाव पंचम से पंचम होना है। अपने उत्तम भाग्य के कारण भाग्य का साथ मिलता है और इन लोगों को जीवन में अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं। बिना ज्यादा मेहनत किए ही इन्हें अच्छे परिणाम हासिल होते हैं।
नवम भाव
अगर नौवें भाव का स्वामी इसी भाव में बैठा हो या नवम भाव में कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली बनता है। अगर नवमेश कुंडली के लाभ भाव, त्रिकोण भाव या केंद्र भाव में हो या इन सभी भावों में शुभ ग्रह बैठे हों तो उस व्यक्ति को भाग्य का पूरा साथ मिलता है।
यदि कुंडली के नौवे भाव में कोई शुभ ग्रह बैठा हो और नवमेश भी किसी शुभ स्थाप पर बैठा हो तो उस जातक को भाग्य का साथ मिलता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। नवमेश के उच्च राशि में होने पर भी जातक को भाग्य का साथ मिलता है।
अगर नवम भाव का स्वामी किसी अशुभ स्थान, नीच या शत्रु राशि में बैठा हो तो यह उस जातक के लिए दुर्भाग्य का कारण बन जाता है। नवमेश के साथ किसी पाप ग्रह या क्रूर ग्रह का होना भी जातक को भाग्य से दूर करता है।
ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में कष्ट झेलता है। उसके काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं। उसे अपने कार्यों में सफलता पाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है और तब भी उसे सफलता मुश्किल से मिलती है।