राहु कब देता है अच्छा और बुरा फल
राहु का प्रभाव – छाया ग्रह राहु जिस ग्रह के साथ बैठा होता है उसके प्रभाव को भी अपने प्रकोप से दूषित कर देता है।
कुंडली के अलग-अलग भावों में राहु का प्रभाव भिन्न होता है। चलिए जानते हैं बारह भावों में राहु का प्रभाव।
अलग अलग भाव में राहु का प्रभाव
प्रथम भाव
कुंडली के लग्न भाव में राहु हो तो वह व्यक्ति अनैतिक कार्यों में लिप्त रहता है। वह स्त्रियों के साथ जबरदस्ती करता है और स्वार्थी होता है। ऐसे जातक अपने ही धन को नष्ट कर देता है और अधर्मी होता है। ऐसा व्यक्ति नीच कर्म करने वाला होता है।
कुटुंब भाव
इस भाव में राहु का होना अपने जन्मस्थान से रहने पर विवश करता है। इन लोगों को संतान सुख मुश्किल से मिलता है। इनके जीवन में संघर्ष बना रहता है। ये मांस खाने वाला और चर्म का कारोबार करने वाला होता है।
तृतीय भाव
तृतीय भाव में राहु योग की चर्चा में भाग लेता है और विवेकशील रहता है। ऐसे लोग दृढ़निश्चयी, संपन्न और पराक्रमी होते हैं। इनके शत्रु अधिक होते हैं और उनके कारण इन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।
चौथा भाव
सुख भाव में राहु जीवन में दुख और कष्ट देता है। ये मां के स्नेह से वंचित रहते हैं। इनके पेट में दर्द रहता है। ये लोग झूठे, प्रपंची, छल करने वाले और क्रूर होते हैं। इनकी दो पत्नियां होती हैं।
पंचम भाव
पंचम भाव में राहु हो तो व्यक्ति मंद बुद्धि और अल्पज्ञानी बनता है। ये निर्धन रहता है। ये लोग अपनी पैतृक संपत्ति को स्वयं नष्ट कर देते हैं।
रोग और शत्रु का भाव
इस भाव में राहु बैठा हो तो जातक स्वस्थ रहता है। इनके सामने शत्रु टिक नहीं पाते हैं। इनकी कमर में हमेशा दर्द रहता है। नीच वर्ग के लोगों के साथ इनकी मित्रता होती है लेकिन इसके बावजूद इनके कर्म बड़े होते हैं।
सातवां भाव
कुंडली का यह भाव जीवनसाथी का होता है। यदि सप्तम भाव में राहु हो तो जातक के जीवनसाथी को कष्ट रहता है। इन्हें व्यापार में घाटा होता है। ये घुमक्कड़ स्वभाव के होते हैं। ये लोग कंजूस होते हैं। ये लोग अधिकतर अनैतिक संबंधों में लिप्त रहते हैं।
आठवां भाव
ये मृत्यु का भाव होता है एवं इस भाव में राहु व्यक्ति को स्वस्थ बनाता है। ये लोग क्रोध और आवेश में आकर अपना ही नुकसान कर लेते हैं। इन्हें कामवासना का अधिक मोह होता है।
नवम भाव
ये धर्म और भाग्य का भाव होता है। ये लोग धर्मात्मा किस्म के होते हैं लेकिन अपनी स्वच्छता रखने में इनकी दिलचस्पी नहीं होती है। ये दरिद्र और अल्पसुखी होते हैं। इनके संतान सुख में कुछ कमी रहती है।
दसवां भाव
कर्म भाव में राहु बैठा हो तो जातक बहुत बड़ा आलसी होता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है। ये बस ड़ींगे हांकते हैं और करते कुछ नहीं हैं। ये लोग अपनी संतान के लिए कष्टकारी साबित होते हैं।
ग्यारहवां भाव
आय के भाव में राहु बैठा हो तो यह जातक को एक जगह टिक कर बैठने नहीं देता है। पैसा कमाने के लिए ये लोग इधर-उधर भागते रहते हैं। इन्हें नौकरी से ज्यादा अपने काम से फायदा होता है। अपनी मेहनत से इन्हें भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
बारहवां भाव
ये व्यय का भाव होता है। इस भाव में राहु बैठा हो तो व्यक्ति नीच, कपटी और गलत काम करने वाला होता है। इन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है। ये लोगों को कष्ट देकर धन कमाते हैं।
ये है भाव के हिसाब से राहु का प्रभाव – इन बारह भावों में राहु का प्रभाव अलग-अलग होता है। कभी राहु अच्छा फल देता है तो कभी बुरा फल प्रदान करता है।