नवरात्र में नवमी के दिन ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा
नवरात्र के नौंवे दिन यानि नवमी तिथि को मां दुर्गा के नौवें स्वरूप देवी सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है. नवरात्र की नवमी तिथि को अंतिम नवरात्र होता है. सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजन का अनुष्ठान पूर्ण होता है. मां सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं. नवरात्र के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री के पूजन से भक्त को मनचाहा वरदान मिलता है. मां दुर्गा के नौ रूपों का अंतिम रूप है सिद्धिदात्री.
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव को देवी आदि शक्ति से ही सभी सिद्धियों की प्राप्ति हुई है. मां सिद्धिदात्री का पूजन करने वाले हर भक्त की 26 प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप -:
देवी का यह स्वरूप सदैव आनंदित मुद्रा में रहता है. देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है. देवी सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं. देवी सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं, दाईं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया हुआ है तो वहीं माता की बाईं भुजा में शंख और कमल का फूल है.
जो भी भक्त नवमी तिथि के दिन मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न कर लेता है उसे देवी तीनों लोकों की ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करती हैं.
पूजन विधि -:
नवरात्र की नवमी तिथि को विशेष हवन किया जाता है. हवन से पूर्व स्थापित सभी देवी-देवताओं और माता रानी की आराधना कर लें. हवन करते समय सभी देवी-देवताओं के नाम से अग्नि में आहूति दें. इसके पश्चात् माता रानी के नाम की आहूति दें. मां दुर्गा के बीज मंत्र – ‘ऊं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै नमो नम:’ का कम से कम 108 बार जाप करें. इस मंत्र का जाप करते हुए आहूति देने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. अब भगवान शिव और ब्रह्मा जी के नाम की आहूति दें. इसके पश्चात् मां दुर्गा की आरती करें और माता रानी को भोग लगाया हुआ प्रसाद वितरित करें.
नवमी के दिन कुछ लोग कन्या पूजन भी करते हैं. इसलिए अगर आप नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं तो नवमी के दिन हवन से पूर्व कन्या पूजन कर लें.
कन्या पूजन की विधि -:
कन्या पूजन के लिए हल्वा-पूरी और चने का भोग लगाया जाता है. कन्या पूजन के लिए सबसे पहले माता रानी की तस्वीर के आगे घी का दीया जलाएं और दुर्गा सप्तशी के तेरहवें अध्याय का पाठ करें. अब कन्या पूजन आरंभ करें. कन्या पूजन के लिए 9 वर्ष से कम उम्र की छोटी कन्याओं को ही आमंत्रित करें. कन्या पूजन के लिए इस मंत्र का जाप करें -:
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्.
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्..
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि.
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते..
अब आमंत्रित सभी कन्याओं के पैर धोएं और उनके माथे पर टीका लगाएं. इसके पश्चात् सभी कन्याओं की कलाई पर मोली बांधें. अब कन्याओं को हल्वा-पूरी और चने का प्रसाद खिलाएं. प्रसाद खिलाने के बाद कन्याओं के पैर छुएं और उन्हें दक्षिणा भेंट में दें.
देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने हेतु मंत्र -:
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:.