नवरात्र के छठे दिन ऐसे करें मां कात्यायनी की पूजा
मां दुर्गा के नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्र के छठे दिन मां के इसी रूप की पूजा की जाती है. इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है. साधक का मन आज्ञा चक्र में होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन होते हैं.
महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने कात्यायनी के रूप में उनके घर जन्म लिया था. महर्षि कात्यायन के द्वारा पालन-पोषण एंव सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण ही मां भगवती को कात्यायनी कहा गया. मां कात्यायनी का दिव्य स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है. मां कात्यायनी सिंह पर विराजमान रहती हैं.
देवी कात्यायनी की अठारह भुजाएं हैं और उनकी इन अठारह भुजाओं में विभिन्न देवताओं के शस्त्र हैं. देवी कात्यायनी को भगवान विष्णु से सुदर्शन चक्र, ब्रह्मा जी से बुद्धिमता, भगवान शिव से त्रिशूल और इसी तरह अन्य देवताओं से भी शस्त्र प्राप्त हैं.
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कैसे हुई देवी कात्यायनी की उत्पत्ति
तीनों लोकों में देवी की सुंदरता और रूप के चर्चे थे जिसे सुन दो राक्षस चंड और मुंड असुर महिषासुर के पास पहुंचे और देवी के रूप का वर्णन किया. तब देवी के रूप पर मोहित हो महिषासुर उनसे विवाह की कामना हेतु कात्यायन पर्वत पर पहुंचा और देवी से विवाह की इच्छा प्रकट की. मां दुर्गा ने महिषासुर से कहा कि वे अगर उन्हें युद्ध में हरा देता है तो देवी उससे विवाह के लिए मान जाएंगीं. तब युद्ध के दौरान भैंस के रूप में महिषासुर के ऊपर बैठ मां दुर्गा ने उसका शीष काट दिया. तभी से मां दुर्गा को देवी कात्यायनी और महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.
देवी कात्यायनी की आराधना से भक्त को अपने जीवन में कष्टों से लड़ने का साहस मिलता है. देवी कात्यायनी की कृपा से भक्तों के अंदर अद्भुत शक्ति का संचार होता है. साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त रहता है.
इन्हें करनी चाहिए पूजा
देवी कात्यायनी की पूजा विवाह योग्य कन्याओं को अवश्य करनी चाहिए. देवी कात्यायनी के पूजन एवं व्रत से कन्याओं का विवाह शीघ्र होता है और उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति होती है.
पूजन विधि
नवरात्र के छठे दिन प्रात:काल स्नान से पवित्र होकर देवी भगवती का पूजन किया जाता है. इस दिन माता रानी के पूजन में सिर्फ श्रृंगार सामग्री और पूजन सामग्री का ही प्रयोग करना फलदायी रहता है. नवरात्रे के छठे दिन देवी कात्यायनी के पूजन में हाथों में पुष्प लेकर देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का 108 बार जाप करें –
चंदहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना.
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी..
इसके पश्चात् दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें. अब माता रानी को पुष्प और जायफल अर्पित करें. छठे दिन देवी कात्यायनी के साथ भगवान शिव का पूजन भी करें. भगवान शिव को प्रिय चीज़ों का प्रयोग भी पूजन में करें और देवी को भी शिव की प्रिय चीज़ें अर्पित करें. देवी कात्यायनी के पूजन में शहद का भोग लगाना चाहिए. प्रसाद का भोग लगाने के पश्चात् देवी कात्यायनी की आरती करें. मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए गुड़ का दान करना शुभ रहता है. नवरात्र के छठे दिन नारंगी रंग के कपड़े पहनें.
यदि किसी कन्या के विवाह में देरी आ रही है या विवाह में कोई न कोई अड़चन आ जाती है तो आप देवी कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करें. इस मंत्र के जाप से वैवाहिक सुख की भी प्राप्ति होती है.
एतत्ते कात्यायनी वदन सौम्यम् लोचनत्रय भूषिमत्.
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायिनी नमोस्तुते..
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