असुरों से लेना पड़ा था भगवान विष्णु को वरदान, पढ़ें पूरी कथा
भगवान विष्णु की माया को आजतक कोई नहीं समझ पाया है. विष्णु जी संसार के कल्याण हेतु कई बार धरती पर अवतार और अनेक तरह के प्रपंच रचते आए हैं. एक तरफ जहां शिव और ब्रह्मा जी सरल और शांत हैं तो वहीं दूसरी तरफ विष्णु जी भक्तों और सृष्टि के उद्धार के लिए कई तरह की लीलाएं रचते रहते हैं.
भगवान विष्णु बुराई और पाप का अंत करने के लिए छल और कपट का भी सहारा लेते हैं. ऐसा कई बार हुआ है जब भगवान विष्णु ने मनुष्य जाति की रक्षा के लिए छल का सहारा लिया हो. भगवान विष्णु ने सबसे बड़ा छल मधु-कैटभ के साथ किया था.
भगवान विष्णु के छल से जुड़ी इस कथा की उत्पत्ति विष्णु जी के कान के मैल से हुई है. कथा के अनुसार भगवान विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न हुए मधु-कैटभ ने कमल में बैठे ब्रह्मा जी को देखा तो दोनों राक्षस ब्रह्मा जी को अपना भोजन बनाने के लिए उद्धत हो उठे. जब ब्रह्मा जी ने दोनों असुरों को लाल-लाल आंखें किए अपनी ओर आते देखा तो उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की.
तब ब्रह्मा जी की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसों के साथ वर्षों तक युद्ध किया था. दोनों ही असुर महाशक्तिशाली थे जिस कारण विष्णु जी उन्हें हरा नहीं पा रहे थे. जब भगवान विष्णु की पूरी शक्ति लगा देने के बाद भी दोनों राक्षसों का अंत न हो सका तो भगवान विष्णु के मन में विचार आया कि अगर इन्हें बल से नहीं तो छल से तो अवश्य ही हराया जा सकता है. तब भगवान विष्णु ने माया से उन दोनों राक्षसों को अपने वश में कर लिया. माया के वशीभूत होकर दोनों असुर कहने लगे विष्णु हम तुम्हारे पराक्रम से अत्यधिक प्रसन्न हैं. तुम हमसे पर मांगों.
वरदान में विष्णु जी ने दोनों असुरों की मृत्यु का उपाय पूछा. माया के वशीभूत दोनों असुरों ने जब चारों ओर जल ही जल देखा तो उन्होंनें प्रभु से कहा कि हमें ऐसी जगह मारो जहां जल न हो. तब भगवान विष्णु ने दोनों असुरों को अपनी जंघा पर रखकर उनका वध किया था.
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