महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर को कहने पड़े थे ये 4 झूठ
महाभारत युद्ध में सिर्फ युधिष्ठिर ही एक ऐसा पात्र था जिसने अपने पूरे जीवन में कभी कोई असत्य नहीं बोला और न ही कभी कोई अधर्म किया था. आज भी लोग युधिष्ठिर के जीवन से धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा लेते हैं. अपने धर्म पालन के कारण युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहा जाता है. बहुत कम लोग ही ये बात जानते हैं कि धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने जीवन में एक नहीं बल्कि 5 बार असत्य बोला था. आइए जानते हैं कि अपने जीवन में धर्मराज युधिष्ठिर ने कब और क्या असत्य बोला था.
-कहा जाता है कि युधिष्ठिर अपने पूर्व जन्म में यमराज थे किंतु एक श्राप के कारण उन्हें धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा था. अपने गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा के बारे में एक असत्य को आधा सत्य और आधा असत्य के रूप में जाना जाता है. महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा नामक एक हाथी की मृत्यु की खबर गुरु द्रोण को दी थी. पुत्र शोक से व्याकुल गुरु द्रोण को युद्ध भूमि में मारना आसान हो जाता बस इसी कारण से युधिष्ठिर ने गुरु द्रोण को आधा सत्य और आधा असत्य कहना पड़ा था.
– अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपनी पहचान छिपाकर विराट में शरण ली थी. तब विराट के राजा ने युधिष्ठिर से उनकी पहचान पूछी तो युधिष्ठिर ने उनसे कई असत्य बोले थे. तब युधिष्ठिर ने बोला ‘मेरा नाम कनक है और मैं एक ब्राहम्ण हूं.’मैं पांडव पुत्र युधिष्ठिर का मित्र हूं. मैं पाशे खेलने में कुशल हूं और एक सुदूर नगर से आया हूं. साथ ही उन्होंने अपने अन्य भाइयों और अपनी पत्नी पांचाली की पहचान के बारे में कई असत्य बोले.
– महाराज विराट के सामने युधिष्ठिर ने अपने भाइयों के बारे में कहा कि मेरा इन लोगों से कोई संबंध नहीं है और ये केवल मेरे परिचित हैं.
– इसके बाद युधिष्ठिर ने असत्य कहा कि उन्हें कई राजाओं के दरबार में काम करने का अनुभव है. महाभारत में भी पांडव पुत्र और विराट राजा के बीच हुई वार्तालाप का विवरण मिलता है.
धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा बोले गए इन असत्यों का कोई विश्वास नहीं करता क्योंकि उन्हें सदा धर्मराज के रूप में ही जाना जाता है. युधिष्ठिर द्वारा बोले गए इन असत्यों के बारे में सभी का अपना अलग-अलग तर्क है. कुछ लोगों का कहना है कि अगर धर्म के हित के लिए कोई असत्य बोला जाए तो वह गलत नहीं होता है या जिस बात से किसी की हानि न हो तो उसे असत्य की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. ये सभी चीज़ें परिस्थ्तियों पर निर्भर करती हैं.
इन सब बातों के बावजूद धर्मराज युधिष्ठिर को सदा धर्म का पालन करने वाले के रूप में ही जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंनें अपने पूरे जीवन में कभी भी असत्य नहीं बोला और न ही कभी धर्म के विरूद्ध कोई काम किया है. इस प्रकार राजा युधिष्ठिर असत्य बोलकर भी सत्यवान बने रहे.
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