कुंडली खोल देगी राज़ कि आपके होंगें कितने विवाह
एक से अधिक विवाह – हिंदू धर्म में एक पुरुष को अपनी पहली पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं है किंतु फिर भी पुरुष अपने विवाह से बाहर दूसरी स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध में रहते हैं।
वहीं स्त्रियां भी विवाहेत्तर संबंध बनाने में अब पुरुषों से कुछ कम नहीं हैं।
आपका विवाह कब, कैसे और किससे होगा और आगे चलकर आपको वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा, इन सब बातों के जवाब कुंडली का विश्लेषण कर निकाला जा सकता है। आपकी कुंडली में विवाह से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर होते हैं।
आज हम आपको बता रहे हैं कि कुंडली के कैसे योगों में जातक का एक से अधिक विवाह होता है।
एक से अधिक विवाह योग
विवाह का कारक
नवग्रहों में से बृहस्पति विवाह का कारक ग्रह माना जाता है। वैवाहिक जीवन पर बृहस्पति का प्रभाव होता है। विवाह से संबंधित कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको कुंडली में गुरु की दशा देखने की जरूरत पड़ती है। कुंडली में गुरु के साथ अन्य ग्रहों की युति से विवाह की संख्या का पता लगाया जा सकता है।
ये हैं कुंडली के योग
– कुंडली का सातवां भाव विवाह का होता है। यदि इस भाव में गुरु और बुध की युति हो रही है तो जातक का केवल एक विवाह होता है। इस भाव में मंगल और सूर्य की युति पर भी एक ही विवाह होता है।
– लग्नेश और सप्तमेश दोनों ही पहले या सातवें भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति के दो विवाह होते हैं।
– सप्तमेश के साथ राहु, मंगल, केतु और शनि छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठे हों तो पहली पत्नी की मृत्यु के बाद व्यक्ति को दूसरा विवाह करना पड़ता है।
– अगर कुंडली के सातवें या आठवें भाव में कोई पाप ग्रह या क्रूर ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु और सूर्य बैठा हो या मंगल बारहवें भाव में विराजमान हो तो जातक के दो विवाह के योग बनते हैं।
– अगर कुंडली में शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो भी दो विवाह के योग बनते हैं।
– यदि कुंडली के लग्न भाव, सप्तम भाव या चंद्रलग्न में कोई द्विस्वभाव राशि जैसे मिथुन,कन्या, धनु या मीन राशि हो तो उस व्यक्ति को दो विवाह करने पड़ते हैं।
कुंडली की ऐसी परिस्थिति में किसी भी कारणवश व्यक्ति के एक से अधिक विवाह के योग बनते हैं। ग्रहों के ऐसी स्थिति में होने पर जातक एक से अधिक विवाह करता है।