आखिर क्यों हिंदू धर्म में है अस्थि विसर्जन का विधान ?
हिंदू धर्म में मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि हिंदू धर्म में मृत शरीर को दफनाने की जगह उसे जलाया क्यों जाता है।
शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के पश्चात् मृत शरीर का अंतिम संस्कार कर उसकी राख को गंगा या किसी पवित्र नदी में विसर्जित करने का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में अस्थि विसर्जन क्यों किया जाता है।
तो चलिए आज जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार हिंदू धर्म में अस्थि विसर्जन का क्या महत्व है और ये क्यों किया जाता है।
अस्थि विसर्जन –
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक निर्दयी इंसान अपने परिवार के साथ रहता था। वह कई लोगों को परेशान करता था। वो इंसान अपने जीवन में कभी कोई पुण्य नहीं करता था। एक दिन वह पास के जंगल में शिकार करने गया जहां वो खुद एक बाघ को मार गिराया।
यमलोक गई आत्मा
उस व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत यमराज के कुछ सेवक उसकी आत्मा को लेने पहुंचे। उसे शरीर का काफी हिस्सा बाघ ही खा चुका था और बचा हुआ हिस्सा अन्य छोटे जानवरों का भोजन बन गया था।
अन्य जीवों का भी बना भोजन
इस बीच कुछ उड़ने वाले जीवों का भी उसका शरीर भोजन बन चुका था। अचानक एक जीव हड्डी के एक टुकड़े को अन्य जीवों ये छिपाता हुआ आकाश की ओर उड़ पड़ा। उसके पीछे दूसरा जीव भी भागा और दोनों के बीच हड्डी को लेकर झगड़ा होने लगा।
मिली नर्क की सज़ा
यमलोक में उस निर्दयी व्यक्ति के पापों का हिसाब किया जा रहा था वहीं दूसरी ओर वे दो जीव उस मृत व्यक्ति के शरीर की हड्डी को लेकर झगड़ रहे थे। उनकी लड़ाई में हड्डी गिरकर सीधा गंगा नदी में जा गिरी। गंगा नदी में हड्डी के गिरते ही वो पवित्र हो गई और उसके सारे पाप धुल गए।
तब मिली मुक्ति
इस प्रकार उस निर्दयी व्यक्ति के सारे पाप धुल गए और वो नर्क की सज़ा से बच गया। धरती लोक में गंगा से पवित्र और कुछ भी नहीं है इसलिए इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। इसलिए गंगा नदी में अस्थि विसर्जन करने का विधान है ताकि मृत आत्मा के सारे पाप धुल जाएं और उसे यमलोक में नर्क की यातनाएं न झेलनी पड़ें।
वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक अस्थियों और नदियों को एक साथ जोड़कर देखते हैं। उनके अनुसार नदी में प्रवाहित मनुष्य की अस्थियां समय-समय पर अपना आकार बदल लेती हैं जो उस नदी से जुड़े स्थान को उपजाऊ बनाती हैं।
प्रकृति को जीवन
नदी का पानी धरती के जिस स्थान को भी छूता है वह उपजाऊ बन जाता है अर्थात् मरने के बाद भी इंसान की अस्थियां प्रकृति को एक नया जीवन देने का काम करती हैं।
अस्थि विसर्जन – पूरे संसार में गंगा के जल जितना पवित्र और कुछ भी नहीं है इसलिए मृत्यु के पश्चात् मृतात्मा को पाप से मुक्ति दिलाने के लिए उसके अंतिम संस्कार से बची हुई राख का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है। गंगा नदी में अस्थि विसर्जन करने से इंसान के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।