होली दहन की सबसे सही पूजन विधि और इस शुभ मुहूर्त पर करें होली पूजा
होली रंगों का त्यौहार है. होली का नाम जैसे ही हमारे दिमाग में आता है तो तभी एक मौज और मस्ती भी इंसानी दिमाग में जन्म लेने लगती है. लेकिन होली मात्र मौज और मस्ती का त्यौहार नहीं है. होली भी हिन्दुओं एक ऐसा त्यौहार है जो बुराई पर अच्छाई का त्यौहार है. किन्तु आज संस्कार मूल्यों के पतन के बाद होली पर बुराई छोड़ने नहीं बल्कि बुराई करने की प्रथा का जन्म हो गया है. योर फार्च्यून का मुख्य उद्देश्य भारत को उसके संस्कारों का दर्पण फिर से दिखाना है ताकि भारत यह समझ सके कि हम असल में क्या थे और आज संस्कारों के अभाव में हमारा समाज कितना अपंग और बीमार हो गया है.
तो आइये आज हम जानते हैं कि होली क्यों आखिर बुराई पर अच्छाई का त्यौहार है और होली दहन का वह सही तरीका कौनसा है जिसे आज भारत का समाज काफी हद तक भूल गया है-
होली की पौराणिक कथा
हिरण्य कश्यपु भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था. इस व्यक्ति ने खुद को भगवान समझना शुरू कर दिया था. एक व्यक्ति जो लगातार बुराई कर रहा था और वह खुद को भगवान समझने लगता है. हिरण्य कश्यपु के राज्य की जनता डर की वजह से हिरण्य कश्यपु की पूजा करती थी. हिरण्य कश्यपु ने घोषणा कर दी थी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी. इसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दिया और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया. हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता था. भारत में सदा से यह बात कही गयी है कि जब-जब धरती पर किसी पापी का जन्म होता है तो उसके अंत के लिए कहीं ना कहीं ईश्वर भी धरती पर आते हैं. वहीँ दूसरी तरफ हिरण्य कश्यपु के अंत के लिए तो भगवान ने उसके घर में ही जन्म ले लिया था.
हिरण्यकश्यपु अपने बेटे प्रहलाद को को सिर्फ इसलिए मारना चाहता था क्योकि वह भगवान की पूजा करता था.लेकिन जिसकी रक्षा खुद भगवान करता है उसको मारना असंभव होता है. असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढकर प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाती है. हिरण्यकश्यपु चाहता था कि उसकी बहन प्रहलाद को लेकर आग में बैठे और उसका बेटा आग में भस्म हो जाए. लेकिन बुराई पर अच्छाई की जीत तब होती है जब वह चादर होलिका के ऊपर नहीं बल्कि प्रहलाद के ऊपर आ जाती है और होलिका जो आग से मर नहीं सकती थी वह आग में भस्म हो जाती है.
होली पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
एक समय था जब होली धन दहन पर भारतीय समाज एकजुट हुआ करता था लेकिन आज होली दहन मात्र एक छोटी सी परम्परा बनकर रह गयी है. होली दहन से पहले होलिका की पूजा की जाती है.
इस साल 2017 में होली दहन मार्च माह में 12 तारीख को है और होली रंग अगले दिन 13 मार्च को सम्पन्न होगा. होली दहन का मुहूर्त कुछ 1 घंटा और 59 मिनट तक रहने वाला है. शाम को 6 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर दहन का मुहूर्त रात्रि 08 बजकर 23 मिनट तक रहेगा.
होलिका पूजन के लिए गंगाजल, गाय का दूध, रोली, चावल, घी का दीया, अगरबत्ती, गाय के गोबर से बने छोटे उपले, और सूत का धागा जलाया जाता है. होली में ज्वाला लगाने से पहले सिद्ध पंडित मंत्रोच्चार के द्वारा होलिका को सजीव बनाता है. होलिका का सात बार परिक्रमा करके सूत को चारों ओर बाधा जाता है जिसके बाद धी का दीया व अग्नि के द्वारा होलिका का पूजा किया जाता है.अग्नि में अपनी श्रद्धा अनुसार भोग लगाया जाता है. जिसके बाद मंत्रोच्चार से ही होलिका को अग्नि दी जाती है.
आज जिस तरह से होलिका पूजन किया जा रहा है वह मात्र एक दिखावा बन गया है. होलिका दहन बिना सिद्ध पंडित के मंत्रोच्चार बिना हो ही नहीं सकता है. इसलिए आइये इस होली पर हम सभी एक सिद्ध और शास्त्र परंपरा के द्वारा ही होलिका पूजन की विधि को सम्पन्न करके पुरानी परम्परा को फिर से जिन्दा करें.