दुनिया के किसी भी कैलेंडर में नहीं हैं हिंदू पंचांग जैसी खूबियाँ !
हिंदू पंचांग – हिंदू धर्म में नववर्ष का आंरभ चैत्र माह की प्रथम तिथि से होता है। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी। नवसंवत्सर अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन 28 मार्च से आरंभ होता है।
सदियों से ऋषि-मुनि इसी दिन नववर्ष मनाते आए हैं।
पश्चिमी सभ्यता को अपनाने के कारण भारतीयों ने भी अंग्रेजी कैलेंडर को पूरी तरह से अपना लिया है और इसका प्रभाव यह निकला है कि हिंदू धर्म के कैलेंडर के अनुसार नववर्ष की तिथि अब कोई नहीं जानता है।
ग्रैगेरियन कैलेंडर से है ज्यादा बेहतर हिंदू पंचांग
सम्राट विक्रमादित्य का शासनकाल भारत में स्वर्णिम काल कहा जाता है। उस समय शक सम्वत की परंपरा थी। राजा शाक्य को पराजित करके विक्रमादित्य ने काल गणना वाली विक्रम संवत को प्रचारित व स्थापित किया था। इस विक्रम संवत की संस्तुति तत्कालीन ज्योतिष, ऋषि और मुनियों ने भी की थी।
हिंदू धर्म में सभी अनुष्ठानों और संकल्पों में जब काल व स्थान को बोला जाता है तब वह विक्रम संवत का वर्ष मास पक्ष तिथि ही बोली जाती है। ये धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से भी मान्य है। वैसे तो ज्योतिष की सभी गणनाएं ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों के आधार पर होती हैं लेकिन पृथ्वी के सबसे अधिक निकट चंद्रमा होता है इसलिए चंद्रमा की गणना इस पृथ्वी के लिए सबसे सटीक व महत्वपूर्ण होती है।
विक्रम तिथि एक पूरे दिन के 24 घंटे में किसी भी समय आंरभ हो सकती है क्योंकि एक तिथि की न्यूनतम आयु 19 घंटे व अधिकतम आयु 26 घंटे की होती है।
इस तरह तिथि की अवधि एवं एक मास की अवधि पूरे तीस दिन की जगह 29.5 दिन के आसपास होती है।
यानि विक्रम संवत की गणना चंद्रमा आदि की सूक्ष्म गति पर आधारित है। अंग्रेजी तारीख हमेशा रात 12 बजे इसलिए बदलती है क्योंकि इसमें कोई सूक्ष्म गणना नहीं होती है।
इस तरह से हिंदू पंचांग दुसरे कैलेंडर से ज्यादा बेहतर है !