इन दो के कारण पांडवों को महाभारत में मिली थी सफलता
हनुमान जी – संसार का अब तक का सबसे बड़ा विश्वयुद्ध महाभारत रहा है।
इस युद्ध में इतना रक्त बहाया गया था की इस युद्धभूमि की मिट्टी का रंग आज भी लाल है।
महाभारत युद्ध पांडवों ने जीता था और उनकी जीत का सारा श्रेय श्रीकृष्ण को जाता है। इस युद्ध में पांडवों को जीत दिलाने के लिए श्रीकृष्ण को अनके देवी-देवताओं की मदद लेनी पड़ी थी। कलियुग के आंरभ होने से 6 माह पूर्व मार्गाशीर्ष की शुक्ल 14 को महाभारत संग्राम का आरंभ हुआ था।
ये युद्ध 18 दिनों तक चला था।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ की रक्षा किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं हनुमान जी ने की थी। हनुमान जी ने अर्जुन को वचन दिया कि वे युद्ध में उनकी रक्षा करेंगें। इसीलिए कुरुक्षेत्र में अर्जुन के रथ पर ध्वज में हनुमान जी विराजमान हुए थे। युद्ध के अंत तक हनुमान जी ने अर्जुन और उसके रथ की रक्षा का बीड़ा संभाला था। युद्ध के समाप्त होने पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से रथ से उतरने के लिए कहा और फिर वे स्वयं भी रथ से उतर गए। उन दोनों के उतरते ही रथ ध्वस्त हो गया।
ये सब देखकर अर्जुन हैरान था, तब श्रीकृष्ण जी ने उसे बताया कि हनुमान जी ने उसकी पूरे युद्ध में रक्षा की थी। ये सब जानकर अर्जुन ने हनुमान जी को धन्यवाद दिया।
देवी शक्ति की आराधना से ही श्रीराम को रावण से युद्ध में विजय हासिल हुई थी और महाभारत युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भी कई बार शक्ति साधना की थी। उसकी साधना के की फलस्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने युद्ध में पांडवों की रक्षा की थी। मां दुर्गा के काली स्वरूप ने भी पांडवों की युद्धभूमि में रक्षा की थी। किवदंती है कि युद्ध में विजयी होने के लिए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने उज्जैन में हरसिद्ध माता और नलखेड़ा में बगुलामुखी माता की आराधना की थी।
हनुमान जी के दिव्य अस्त्रों और मां दुर्गा के आशीर्वाद से ही पांडवों को इस महासंग्राम में विजय प्राप्त हुई थी।