जानें क्यों घट रहा है गोवर्धन पर्वत का आकार
श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं अद्भुत हैं. श्रीकृष्ण ने बालपन से ही कई ऐसी लीलाएं रची हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं. जन्म के बाद से ही श्रीकृण ने अपनी लीलाएं दिखाना शुरु कर दिया था. पूरा गांव उन्हें बहुत प्रेम करता था. एक ओर श्रीकृष्ण की रासलीलाएं प्रसिद्ध हैं तो वहीं उनकी बाल लीलाएं भी कुछ कम नहीं हैं. श्रीकृष्ण ने अपने बालपन में ही कई ऐसे चमत्कार किए जिन्हें देखकर लोग आश्चर्यचकित हो गए. इन्हीं कथाओं में से एक है गोवर्धन पर्वत की कथा. इंद्र के प्रकोप से अपने गांव वालों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी तर्जनी अंगुली पर पूरा विशालकाय गोवर्धन पर्वत उठा लिया था.
कहा जाता है कि 5000 साल पहले गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई 30 हज़ार मीटर ज्यादा हुआ करती थी. लेकिन अब इसकी ऊंचाई में काफी कमी आई है. इस अलौकिक पर्वत के घटने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है. तो आइए जानते हैं गोवर्धन पर्वत के घटने के पीछे छिपे कारण के बारे में.
पौराणिक कथा
शास्त्रों के अनुसार एक ऋषि द्वारा मिले श्राप के कारण आज गोवर्धन पर्वत का आकार घट रहा है. किवदंती है कि गोवर्धन पर्वत के प्राकृतिक सौंदर्य को देख ऋषि पुलस्त्य बेहद प्रसन्न हुए थे और वे इस पर्वत को अपने साथ ले जाने लगे. गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा था कि आप मुझे जहां भी पहली बार रखेंगें मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. पर्वत को अपने साथ ले जाते हुए ऋषि पुलस्त्य ने रास्ते में साधाना करने हेतु पर्वत को नीचे रख दिया. बस फिर क्या था अपनी कही बात के अनुसार गोवर्धन पर्वत वहीं स्थापित हो गया. अब लाख कोशिशों के बाद भी गोवर्धन पर्वत ऋषि से नहीं उठ पा रहा था. इस पर क्रोधित होकर ऋषि ने पर्वत को श्राप दिया कि दिन-ब-दिन तुम्हारा आकार घटता जाएगा. अब माना जाता है कि उसी दिन से यह पर्वत वहां पर स्थित है और ऋषि पुलस्त्य के श्राप के कारण इसका आकार घट रहा है. वर्तमान समय में गोवर्धन पर्वत का आकार पहले से बहुत कम हो गया है.
श्रद्धालु करते हैं परिक्रमा
मथुरा-वृंदावन आने वाले भक्त गोवर्धन पर्वत के दर्शन करना नहीं भूलते हैं. कई लोग इस विशाल पर्वत की परिक्रमा भी लगाते हैं. प्राचीन काल से ही भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाते हैं. इस पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है. जहां से परिक्रमा शुरु होती है वहां पर दानघाटी नामक एक मंदिर भी है. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के दौरान रास्ते में कई धार्मिक स्थल दिखाई देते हैं. इस स्थान को भगवान कृष्ण की लीलास्थली भी कहा जाता है.
गिरिराज पर्वत भी कहते हैं
भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली पर स्थित है यह अलौकिक पर्वत. इस पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है. द्वापर युग में ब्रज के वासियों के प्राणों की रक्षा हेतु श्रीकृष्ण ने इस गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली पर उठा लिया था. तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा भी की जाती है. हिंदू धर्म में गोवर्धन पर्वत पूजनीय है.