द्रौपदी के पिता ने ही उसके लिए मांगा था पांच पतियों का वरदान
महाभारत में द्रौपदी का पात्र अत्यंत करुणामयी और सहनशीलता का परिचायक है. किस तरह द्रौपदी को पांच पतियों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा और फिर भरी सभा में वस्त्रहरण का सामना करना उसके चरित्र और धैर्य को दर्शाता है. महाभारत काल के सदियों बाद भी यही कहा जाता है कि द्रौपदी का पूरा जीवन अनके संकटों और दुखों से भरा रहा था. जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आई जब उसे अपमान सहना पड़ा.
लेकिन शायद आप ये नहीं जानते होंगें द्रौपदी को अपने जीवन में अपार कष्ट और दुख अपने पिता द्रुपद के कारण सहने पड़े थे. जी हां, ये सत्य है. द्रुपद के कारण ही द्रौपदी को पांच पुरुषों की पत्नी होना और वस्त्रहरण जैसे अपमान से गुज़रना पड़ा था. महाभारत की कथा के अनुसार द्रौपदी के कष्टों का कारण उसके पिता थे.
पुत्र के लिए किया था यज्ञ
कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए राजा द्रुपद ने एक पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था. यज्ञ में महान ऋषियों ने भी हिस्सा लिया था. राजा द्रुपद ने ऋषियों की सभी बातों का पालन कर यज्ञ आहूति देनी शुरु की थी. अग्निकुंड से राजा द्रुपद को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम द्रुष्टद्युम्न रखा गया. पुत्र के बाद हवन कुंड से एक पुत्री के लिए भी राजा द्रुपद को आहुति देनी थी किंतु वे बिना आहुति दिए ही हवन से जाने लगे. वहां उपस्थित ऋषियों ने पुत्री की प्राप्ति के लिए उन्हें आहुति देने के लिए बुहत कहा किंतु वह नहीं माने. ऋषियों का कहना था कि इस अग्निकुंड से प्राप्त हुई पुत्री पूरे इतिहास के लिए उदाहरण बनेगी किंतु राजा द्रुपद पुत्री की प्राप्ति नहीं चाहते थे.
राजा द्रुपद ने पुत्री को किया अस्वीकार
राजा द्रुपद ने पुत्री के लिए आहुति देने से मना करते हुए कहा कि मेरा सम्मान बढ़ाने के लिए मुझे पुत्र की आवश्यकता थी, पुत्री तो केवल अपमान का कारण बनती है. ऋषियों के भी बहुत प्रयास करने के बाद भी द्रुपद आहुति देने को तैयार नहीं था. द्रुपद की इस जिद के आगे अग्नि देव क्रोधित हो गए और हवन कुंड से ज्वाला निकलकर द्रुपद का रास्ता रोकने लगी. तब विवश होकर राजा द्रुपद ने पुत्री की प्राप्ति के लिए आहूति दी.
पुत्री के लिए मांगी अपार पीड़ा
कूपिक होकर राजा द्रुपद ने हवन में आहुति देते हुए अग्निदेव से मांगा कि ‘मुझे एक ऐसी पुत्री दो जिसे जीवनभर केवल कष्ट ही सहने पड़ें लेकिन फिर भी वो कभी न टूटे. उसके साथ आजीवन अन्याय हो लेकिन वो फिर भी न्याय की मिसाल बने. दुनिया की नज़रों में अपवित्र होकर भी वो गंगा की तरह पवित्र हो. उसे पांच पतियों का साथ मिले किंतु फिर भी वह पतिव्रता हो. क्या आप ऐसी पुत्री दे सकते हैं मुझे’. राजा द्रुपद को लगा ऐसी पुत्री दे पाना असंभव है लेकिन तभी अग्निकुंड से एक कन्या अवतरित हुई जिसका नाम द्रौपदी रखा गया.