वास्तुशास्त्र के अनुसार इस दिशा में दोष होने पर संतान को मिलता है दुख !
वास्तुशास्त्र का मनुष्य के सुख-दुख से गहरा संबंध है।
वास्तुशास्त्र में दिशा को बहुत महत्व दिया गया है। आपको शायद मालूम नहीं होगा कि दिशाओं को ध्यान में रखकर ही वास्तु का निर्धारण किया जाता है। वास्तु के अनुसार यदि घर की पूर्व दिशा ऊंची हो तो घर में गरीबी और पारिवारिक कलह का जन्म होता है। उस घर का स्वामी दरिद्र बन जाता है और उसकी संतान अस्वस्थ और मंदबुद्धि हो सकती है।
वास्तु के अनुसार पूर्व दिशा उस घर में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति से जुड़ी होती है इसलिए अगर पूर्व की दिशा में कोई दोष होगा तो उसके कारण उस घर में दरिद्रता का वास हो जाएगा।
वास्तुशास्त्र में दिशा –
– वास्तु में बताया गया है कि पूर्व दिशा में बनी जगह को खाली रखने से पुत्र एवं संतान को हानि पहुंचती है। उस व्यक्ति को या तो संतान का सुख ही नहीं मिल पाता है या फिर उसकी संतान विकलांग जन्म लेती है।
– यदि घर की पूर्व दिशा में गंदगी, कचरा या कोई अनावश्यक वस्तु पड़ी है तो वहां रहने वाले लोगों को धन की हानि होती है। अगर पूर्व दिशा में मिट्टी के टीले हों तो धन और संतान को नुकसान होता है।
– वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर पूर्व दिशा में बना मुख्य द्वार या अन्य कोई भी द्वार आग्नेयमुखी हो तो उस घर में दरिद्रता, अदालत के चक्कर काटना और चोरी का भय रहता है।
– अगर घर की पूर्व दिशा में शयनकक्ष यानि बैडरूम हो तो उस घर का मुखिया परेशान और अशांत रहता है। हर समय उसे तनाव घेरे रहता है।
– पूर्व दिशा में रसोईघर हो तो घर-परिवार और मुखिया की प्रतिष्ठा में कमी आती है।
– पूर्व दिशा में शयनकक्ष या पूजा घर होने से वैवाहिक जीवन में अशांति फैलती है। पति-पत्नी के बीच मतभेद और विवाद रहता है।
वास्तुशास्त्र में दिशा का महत्व – अगर आप अपने जीवन और घर-परिवार में सुख-शांति चाहते हैं तो आपको अपने घर एवं ऑफिस की पूर्व दिशा का खास ख्याल रखना चाहिए। इस दिशा में कोई भी अनावश्यक वस्तु न रखें।