वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ज्‍योतिषीय कारण

वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ये हैं 10 ज्योतिषीय कारण !

वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ज्‍योतिषीय कारण – ज्‍योतिष के अनुसार वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्‍ति ग्रहों की स्थिति पर भी निर्भर करती है। विवाह के बाद आपका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा या आप दोनों को किस प्रकार की समस्‍याओं का सामना करना पड़ेगा, इन सब बातों का पता ज्‍योतिष शास्‍त्र से लगाया जा सकता है।

अगर आपको दांपत्‍य सुख नहीं मिल पा रहा है तो इसके पीछे का कारण आपकी कुंडली के ग्रह भी हो सकते हैं।

आइए जानते हैं वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ज्‍योतिषीय कारण – कुंडली के वे कौन-से योग हैं जो व्‍यक्‍ति को दांपत्‍य सुख से वंचित रखते हैं।

वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ज्‍योतिषीय कारण –

कुंडली का सातवां भाव और सप्‍तमेश विवाह का भाव कहलाता है। वैवाहिक जीवन इसी भाव में बैठे ग्रहों पर निर्भर करता है। इसके अलावा प्रेम और विवाह का कारक शुक्र ग्रह को भी माना जाता है।

1 – स्‍त्रियों की कुंडली में गुरु पति का कारक और पुरुषों की कुंडली में शुक्र पत्‍नी का कारक माना जाता है। कुंडली का बारहवां भाव वैवाहिक सुख प्रदान करता है। यदि इन भावों में कोई पाप, क्रूर व मारक ग्रह बैठा हो तो उस जातक को वैवाहिक सुख नहीं मिल पाता है।

2 – अगर कुंडली के सातवें भाव पर सूर्य, राहु या शनि की दृष्टि पड़ रही है तो उस जातक को अपने साथी से प्रेम नहीं मिल पाता है। इसके अलावा सप्‍तमेश अशुभ स्‍थान में बैठा हो या शुक्र ग्रह कुंडली में कमज़ोर या पीडित हो तो भी वैवाहिक सुख में कमी आती है।

3 – कुंडली में सूर्य-शुक्र की युति भी पति-पत्‍नी के बीच आपसी मतभेद उत्‍पन्‍न करती है। सातवें भाव पर क्रूर ग्रहों का विराजमान होना भी वैवाहिक जीवन के लिए अच्‍छा नहीं माना जाता है।

4 – सप्‍तम भाव का स्‍वामी शनि, राहु और सूर्य के साथ युति कर के बैठा हो या सातवें भाव में मकर या कुंभ राशि बैठी हो तो इसका नकारात्‍मक असर वैवाहिक जीवन पर पड़ता है।

5 – सप्‍तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या सप्‍तमेश के पीडित होने की स्थिति में भी जातक को वैवाहिक सुख नहीं मिल पाता है।

6 – यदि कुंडली के बारहवें भाव में अशुभ ग्रह बैठे हों या इस भाव में शुक्र निर्बल या पीडित हो रहा हो तो उस व्‍यक्‍ति को दांपत्‍य सुख नहीं मिल पाता है।

7 – कुंडली के लग्‍न भाव में राहु बैठा हो और सूर्य-शुक्र की युति बनने पर भी पति-पत्‍नी के बीच प्रेम नहीं रहता है।

8 – यदि लग्‍न भाव में शनि विराजमान हो या सप्‍तम भाव का स्‍वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रहों के साथ बैठा हो तो विवाह में सुख-शांति क्षीण रह जाती है।

9 – लग्‍न भाव में मंगल बैठा हो द्वितीयेश पर मारणात्‍मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्‍नी की मृत्‍यु संभव होती है। इस स्थिति में जातक को वैवाहिक सुख से वंचित रहना पड़ता है।

10 – अगर किसी स्‍त्री की कुंडली में बृहस्‍पति ग्रह पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव पड़ रहा हो या सप्‍तमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो या कुंडली के सप्‍तम भाव में राहु, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तो उस स्‍त्री को अपने पति से प्रेम नहीं मिल पाता है।

ये वैवाहिक सुख से वंचित रहने के ज्‍योतिषीय कारण हैं। अगर आपको भी किसी वजह से वैवाहिक सुख नहीं मिल पा रहा है या पति-पत्‍नी के बीच झगड़ा रहता है तो किसी अनुभवी ज्‍योतिष को अपनी कुंडली दिखाएं।

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