इस स्थान पर हुई थी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु, इस गांव का हर बच्चा जानता है चक्रव्यूह भेदना
महाभारत युद्ध में पांडवों की शौय और साहस की जयकार तो खूब हुई लेकिन इस महायुद्ध में एक ऐसा भी योद्धा था जो शायद पांडवों से भी ज्यादा शूरवीर और साहसी था. जी हां, बात कर रहे हैं अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की. अभिमन्यु कितना बड़ा योद्धा था इस बात का अंदाज़ा हम इसी से लगा सकते हैं कि उसे अपनी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदना सीख लिया था. अर्जुन से चक्रव्यूह भेदने की कथा सुनते-सुनते अभिमन्यु की माता सो गई थी जिस कारण अपनी माता के गर्भ में अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश के अंश को ही सुन पाया और उससे बाहर निकलने के रणनीति से वो अनजान रह गया था.
महाभारत युद्ध में अभिमन्यु को बहुत कम आयु में अपने प्राण गंवाने पड़े थे किंतु आज भी उसके साहस और शूरवीरता की कथाएं प्रसद्धि हैं. अभिमन्यु की वीरता और साहस को देख खुद कौरव भी हैरान थे. महाभारत काल में केवल अभिमन्यु ही एकमात्र योद्धा था जो चक्रव्यूह भेद सकता था. किवदंती है कि महाभारत के महायुद्ध में अभिमन्यु अकेला ही चक्रव्यूह को भेदने निकला था. कौरवों ने छल से युद्ध के नियमों का उल्लंघन कर अभिमन्यु का वध कर दिया था. भले ही महाभारत की रणभूमि में अभिमन्यु की मृत्यु हो गई हो लेकिन उसके साहर और वीरता की लोग आज भी मिसाल देते हैं. कहते हैं कि इतनी कम उम्र में अभिमन्यु जैसा साहस और किसी भी योद्धा में नहीं देखा गया है.भले ही महाभारत में अभिमन्यु चक्रव्यूह न भेद सका हो लेकिन महाभारत युद्ध की रणभूमि पर आज भी चक्रव्यूह रचने और भेदने का खेल खेला जाता है.
कहां होता है चक्रव्यूह का खेल
पौराणिक कथाओं के अनुसार हरियाणा के तानेसर से अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया था. कुरुक्षेत्र की इस जगह को आज भी तानेसर के नाम से ही जाना जाता है. आज यहां पर रहने वाले बच्चों को भी चक्रव्यूह भेदना आता है. इस स्थान पर चक्रव्यूह रचने और भेदने को एक खेल की तरह समझा जाता है. कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोगों को ये कला प्राकृतिक रूप से जन्म से ही प्राप्त होती है.
कहते हैं कि यहां कई घंटों तक चक्रव्यूह भेदने के खेल में हार और जीत का फैसला कर पाना मुश्किल होता है. हरियाणा के कुरूक्षेत्र के अमिन गांव के बच्चे आज भी चक्रव्यूह भेदने का यह खेल खेलते हैं. इस गांव से थोड़ी दूर पर स्थित एक प्राचीन किला है. कहते हैं कि इस स्थान पर दूर-दूर से लोग अभिमन्यु की वीरता और साहस की कहानियां सुनने के लिए आते हैं.
तो इस तरह कलियुग में भी महाभारत के कुछ अंश जीवित हैं. इसके अलावा महाभारत में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने वाले गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के भी जीवित होने की बात कही जाती है. पांडवों के पांचों पुत्रों को जीवित जला देने के कारण श्रीकृष्ण ने अयवत्थामा को अनंतकाल तक रोगी बन कर जीने का श्राप दिया था. कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी अपने रोगी शरीर को लेकर पृथ्वी पर भटकता है.